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9 Feb 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

—–ग़ज़ल—–
ग़मों से उबरने को जी चाहता है
ख़ुशी दिल में भरने को जी चाहता है

तुम्हारी निगाहों में ही देख कर अब
क़सम से सँवरने को जी चाहता है

तुम्हें चाहता हूँ मैं जाँ से भी ज़्यादा
ये इक़रार करने को जी चाहता है

किया जो न अब तक मुहब्बत में तेरी
वो अब कर गुज़रने को जी चाहता है

बना कर तुम्हें दिल की रानी ऐ हमदम
तुम्ही पर तो मरने को जी चाहता है

मुहब्बत के ज़ल्वे जहाँ पर हैं “प्रीतम”
वहीं पर ठहरने को जी चाहता है

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

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