ग़ज़ल
——-ग़ज़ल—–
जिसे अपनी हम ज़िन्दगी जानते हैं
उसे चश्म की रौशनी जानते हैं
जो सीखे हैं जीना यहाँ मुश्क़िलों में
ख़ुशी कैसे मिलती वही जानते हैं
जलाते हैं शम्मा जो दिल में सभी के
कहाँ वो कभी तीरगी जानते हैं
जहाँ टूटकर दिल हमारा था बिखरा
क़सम से अभी वो गली जानते हैं
न मायूस हो तुम ज़ईफ़ी से अपनी
तुम्हें अब तलक हम कली जानते हैं
ब-ख़ूबी हूँ वाक़िफ़ मुहब्बत से हम भी
क़दम दर क़दम बे-ख़ुदी जानते हैं
अभी तालिबे-इल्म हैं हम तो “प्रीतम”
अभी हम कहाँ शायरी जानते हैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)