ग़ज़ल
212 212 212 212
याद तेरी रुलाती रही रात भर
दर्द दिल में जगाती रही रात भर
जख्म दिल को दिया तूने’ गहरा बहुत
आह मेरी बताती रही रात भर
आँख तू फेरकर दूर यूँ हो गयी
रूह तुझको बुलाती रही रात भर
जीस्त तुझ बिन कटे कैसे’ ये सोच के
नींद आकर के’ जाती रही रात भर
आरज़ू बस यहीं छोड़ जाना नहीं
दूरी अपनी डराती रही रात भर
लग्जिशों की सजा फासलों से न दो
चश्म~ए~तर बताती रही रात भर
इश्क में इम्तिहाँ होंगी’ “कश्यप” बहुत
बात मुझको सताती रही रात भर
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आयुष कश्यप
फारबिसगंज