ग़ज़ल
आप हमें भूल गए
गैर के साथ गए मेरी कमी भूल गए।
जो हमें याद रहे आज वही भूल गए।
घूमते आप फिरे रोज़ नई महफ़िल में
दी सज़ा आपने खुद बात ख़री भूल गए।
आपकी याद उदासी बनी इन आँखों की
प्यार का रोग लगा हम तो हँसी भूल गए।
बेरुखी सह न सके आज जिएँ हम कैसे
ग़म दिए आपने उल्फ़त जो मिली भूल गए।
है अजब इश्क जुदाई न सही जाए सनम
हसरतें आप यहीं दिल की रखी भूल गए।
उम्र भर आप सताएँगे हमें यादों में
आँख से ख्वाब चुरा आप नमी भूल गए।
ज़िंदगी आप बिना ‘रजनी’ गुज़ारे कैसे
रोज़ मिलते रहे जो आज गली भूल गए।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर