ग़ज़ल
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मेरा दिल मेरा आईना तो दिखा दे
घने सन्नाटे में आवाज़ लगा तो दे
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बात ये नहीं कि कौंन कैसा है यहाँ
मैं कहाँ हूँ मुझे मेरा पता तो दे
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चला जा रहा हूँ पर मालूम नहीं
मंज़िल है कहाँ ज़रा ये तो बता दे
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मन की बातें बस मन में ही हैं
इस पर हुक्म अपना चला तो दे
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सागर की गहराई मैं क्या जानू
नदी का सफ़र कभी करा तो दे
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नहीं है मुझे मशहूरी की चाहत
हकीकत का रूप मेरा दिखा तो दे!!