ग़ज़ल
——-ग़ज़ल——
चलो मिल के उल्फ़त की शम्मा जलाएँ
दिलों से हसद —— –के अँधेरे मिटाएँ
अगर आप चाहो किसी से दुआएँ
कभी मुफ़लिसों को गले से लगाएँ
गुज़रती है कैसे शबे ग़म अकेले
हमें तुम बताओ तुम्हें हम बताएँ
सिखाया बुज़ुर्गों ने हमेशा ये हमको
सही रास्ता ही सभी —-को दिखाएँ
कभी पोंछ आँसू किसी का यहाँ पर
चलो फ़र्ज़ —–इंसान का हम निभाएँ
कभी मुश्क़िलों से न घबराना साहेब
अगर मज़िलों की तरफ़ आप जाएँ
ज़रा सोच कर दिल लगाना ऐ “प्रीतम”
कहीं लोग तुमसे –न फिर रूठ जाएँ
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)