ग़ज़ल
ग़ज़ल
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अब नहीं —दिल ये नादान है
हो गई सबकी —पहचान है
दोस्त है ——कौन है बेवफ़ा
अब समझना ——आसान है
कोई –तो घर —-बना ले यहाँ
दिल की बस्ती तो सुनसान है
जो बुज़ुर्गों की– ख़िदमत करे
वो न होता ——— परेशान है
जिसमें इंसानियत—- ही नहीं
किस तरह से —–वै इंसान है
रख भरोसा ख़ुदा पर सदा
सबका “प्रीतम” वो भगवान है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)