ग़ज़ल
——ग़ज़ल—-
इस नये साल में ———-संकल्प उठाया जाए
साथ मुफ़लिस के भी त्योहार मनाया जाए
फ़र्ज़ इंसान —-का — होता है यही —ऐ लोगों
भूल कर दिल न किसी का भी दुखाया जाए
मुद्दतों से जो तड़पते ——- हैं दर्द ले के यहाँ
उनके ज़ख़्मों पे भी —मरहम तो लगाया जाए
जो समझते ही ——–नहीं दर्द ग़रीबों की तो
उन हकीमों को न अब घाव दिखाया जाए
शान जाती –है तिरंगे –की सलामी– में अगर
ऐसे ग़द्दार को ——भारत से —–भगाया जाए
फ़र्क़ जो कर न सके झूठ सही का “प्रीतम”
ऐसे मुंसिफ़ को —-न कुर्सी पे बिठाया जाए
———-प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)