आजमा कर तो देखो
बियाबां में कलियाँ खिला कर तो देखो
चिराग़ आंधियों में जलाकर तो देखो।
उन ज़ख्मों पे क्या टिक सकेंगी निगाहें
कभी दुख के नज़दीक जा कर तो देखो।
किसी दिल को तो मिल सकेगा उजाला
इक बुझती शमा को जला कर तो देखो।
न हारा कभी हौसलों का सिपाही
इरादे को मक़सद बना कर तो देखो।
फटेहाल भूख ही भटकती मिलेगी
गरीबों की बस्ती में जाकर तो देखो।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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