ग़ज़ल
——ग़ज़ल——
अब मेरी क़ौम को तू न——– इतना जवाल दे
सबको मिले उरूज ———ख़ुदा वो कमाल दे
भूखे हैं कबसे बच्चे ———ग़रीबों के या ख़ुदा
कर दे करम इलाही ———–उन्हे रोटी दाल दे
माना कि मैं ग़रीब हूँ ———-लेकिन ऐ दोस्तों
सिक्का नहीं हूँ ———कोई जो चाहे उछाल दे
कब तक जिएँगे लोग ये ज़िल्लत की ज़िन्दगी
दहशत में जो फँसे हैं उन्हे——अब निकाल दे
मर जाऊँ चाहे———भूखे मगर या ख़ुदा मुझे
करना करम तू ——- इतना कि रोटी हलाल दे
“प्रीतम” मिटा ———–दूँ सारे अँधेरे मैं देश के
मौला तू मेरे ————–हाथ में ऐसी मशाल दे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)