ग़ज़ल
—-ग़ज़ल—
जो कभी हँसती थी रात भर
वो तड़पती —–रही रात भर
एक भौंरे –की चाहत में ही
रात रानी “””-“खिली रात भर
वो नहीं आया तो क्या हुआ
ख़्वाब में -बात”””की रात भर
ज़ख़्म दिल—- के पुराने जगे
थी हवा—-मनचली रातभर
चाँद था ——-मेरे आगोश में
दूर थी तीरग़ी ——–रात भर
सोच कर वस्ल है उनसे कल
खलबली थी “” मची रात भर
कब सहर होगी “प्रीतम” मेरी
देखता “”””हूँ घड़ी””””रात भर
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)