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19 Dec 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

——–ग़ज़ल——

वो ख़ुशनसीब हैं —-जिनकी यहाँ पे माँएँ हैं
क़रम ख़ुदा —-की है मिलती उन्हें दुआएँ हैं

जो फेर लेते हैं मुँह बाप माँ की ख़िदमत से
कभी मुआफ़ ——- न हों ऐसी ये ख़ताएँ हैं

न माँग दुनिया से गर माँगना है तो आजा
दरे “”””——रसूल पे सब पूरी इल्तिजाएँ हैं

जरा सँभल के चरागों को जलाना यारों
बड़ी ही तेज़ ये काफिर चलीं हवाएँ हैं

दुआ हो सिर पे जो माँ-बाप की तो ऐ यारों
तो रहती दूर ये कोसों सभी बलाएँ हैं

न जाओ रूठ के “प्रीतम” छुड़ा के हाथों को
चले भी आओ कि महकी हुई फ़ज़ाएँ हैं

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)

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