ग़ज़ल हो जाये
बह्र-रमल मुसम्मन मख़बून महजूफ़
2122 1122 1122 22
मेरे मौला यूं तेरा मुझपे फ़ज़ल हो जाये।
मैं अगर लफ़्ज भी छू लू तो ग़ज़ल हो जाये।।
मेरे हाथों में हुनर बख्श दे ऐसा मौला।
मैं जो पत्थर को छुऊ ताजमहल हो जाये।।
दिल के अरमान सभी मेरे मुकम्मल कर तू।
आंख में तैरता हर ख्वाब कॅवल हो जाये।
मैं तसब्बुर में रहूं और उसे पढ़ता रहूं।
दिल में यादों को बिछा लूं ये रहल हो जाये।।
कोई सूरत हो हसीं दिल में उतर जाये अनीश ।
मेरी हमराज़ बने जान ए ग़ज़ल हो जाये।।
@nish shah