ग़ज़ल:- हमारे इश्क़ के शैदाइयों में तुम ही थे…
हमारे इश्क़ के शैदाइयों में तुम ही थे।
हमारे दिल की हसीं वादियों में तुम ही थे।।
हमारे हुस्न की रानाईयों में तुम ही थे।
हमारी आंख की बीनाईयों में तुम ही थे।।
हमारा ज़िक्र नहीं था किसी जुबां पर ही।
सभी जुबानों सभी सुर्ख़ियों में तुम ही थे।।
न मिल सकी मुझे पहचान इस ज़माने में।
ज़माने भर के शनाशाईयों में तुम ही थे।।
तुम्हारे शहर में हमको ठिकाना मिल न सका
हमारे दिल में बसी बस्तियों में तुम ही थे।
गए जो आप अकड़ने लगा बदन मेरा।
हमारी धड़कनों और धमनियों में तुम ही थे।।
ठिठुरती सर्दियों में दिल मचल गया अपना।
लिहाफ़ था नहीं बस सर्दियों में तुम ही थे।।
✍अरविंद राजपूत कल्प
रानाई:- सुंदरता
शनासाई:- जान पहचान, परिचय।
बीनाई:- दृष्टि, आँख की रौशनी, नज़र
दानाई:- अक्लमंदी, बुद्धिमत्ता।
शैदाई:- प्रेमी, प्रेमासक्त, रूमानी
आशिक़ होना, पागलपन, दीवानगी
शक़ीन, चंचल
लिहाफ़:- पतली रजाई