ग़ज़ल- सूरज समान दूजा सितारा नहीं हुआ….
सूरज समान दूजा सितारा नहीं हुआ।
अपने ही जैसा कल्प दोबारा नहीं हुआ।।
आया था अकेला तू अकेला ही जा रहा।
ख़ुद के सिवाय कोई सहारा नहीं हुआ।।
इक़ वार इम्तहान-ए-वफ़ा हम न दे सकें।
हम भी तो ज़ान देते इशारा नहीं हुआ।।
महंगाई और टेक्स ने लूटा है इस क़दर।
भारी पगार से भी गुज़ारा नहीं हुआ।।
आये न अच्छे दिन कभी अच्छे चले गए।
अच्छे दिनों के बाद से नारा नहीं हुआ।।
क्यों ‘कल्प’ ढूंढते रहे सहरा में शामियां।
साया भी धूप ढलते तुम्हारा नहीं हुआ।।
✍ अरविंद राजपूत’कल्प’