*ग़ज़ल*/ *सियासत*
ग़ज़ल
बताएँ चोर सबको हम, अजब अपनी हिमाक़त है।
हमारे साथ होता जो, उसे मिलती रिआयत है।
पलटना बोल कर कुछ भी, पहनना दीन का चोला,
मियाँ मासूम बनने से, यहाँ मिलती रियासत है।
बजाकर झुनझुना हरदम, फँसा रखना जमूरे को,
बदल तरकीब चोरी की, दिखानी फिर कियासत है।
मुसल्लम मुर्ग मालिश से, करे क़ानून भी खिदमत,
सड़क से जेलखाना तक, मिनिस्टर की जियाफत है।
कला हम जानते हैं जो, बनाती झूठ को सच्चा,
हमारे पास ही केवल, यहाँ सच की विरासत है।
सुनो, इन प्रेस वालों को, हमेशा साथ में रखना,
बदौलत आज भी इनकी, यहाँ चलती सियासत है।
लिए हैं हाथ में झाड़ू, निशाना सिर्फ गल्ले पर,
मिली इस माल की साहब, अभी हमको हिरासत है।
कियासत- समझदारी, दक्षता।
हिमाक़त- नादानी, मूर्खता।
जियाफत- मेहमानदारी, आतिथ्य।
-©नवल किशोर सिंह
24.07.2023