ग़ज़ल सगीर
आज सारे हिसाब कर दूंगा।
तुझको मैं लाजवाब कर दूंगा।
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दूध का दूध पानी का पानी।
झूठ सब बेनकाब कर दूंगा।
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जो भी रखते हैं नफरतें उनको।
पेश उनको गुलाब कर दूंगा।
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साजिशें जो करेंगे मेरे खिलाफ।
उनका खाना खराब कर दूंगा।
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ऐसी तासीर उसके होठों की।
छू लिया तो शराब कर दूंगा।
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जब मिलोगे सुकून से मुझसे।
खूब रंगी शबाब कर दूंगा।
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दौलत ए इश्क किसको बख्शूंगा।
इसका अब इंतिखाब कर दूंगा।
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सुर्ख रू आप हों ज़माने में।
काम ऐसे जनाब कर दूंगा।
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सगीर मैं उसको पढ़ सकूं हरदम।
उनका चेहरा किताब कर दूंगा।
DR सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच यूपी