ग़ज़ल सगीर
तड़प दिल में,ज़ुबां पे तिश्नगी¹,आंखो में पानी है।
बहुत मासूम सा है इश्क़, ये पागल जवानी है।
बहुत मुश्किल है इज़हारे मुहब्बत²,जां फिशानी³ है।
तजस्सुस⁴ उसकी है,और बात भी मुझको बतानी है।
मोहब्बत के तक़ाज़े⁵ के लिए छोटी है यह दुनिया।
हुआ जो इश्क़ में पागल फ़हम⁶ की यह निशानी है।
ख़फा⁷ अपने हुए तो लुट गई अरमान की दुनिया।
कभी फुर्सत में गम की दास्तां⁸ उनको सुनानी है।
जहां पर छोड़कर मुझको गए थे लौटकर आना।
यहां हर एक ज़र्रे⁹ में मोहब्बत की निशानी है।
मुहब्बत एक खुशबू है,किसी बंदिश न पहरे में,
कही राधा दीवानी है कहीं मीरा दीवानी है।
यहां नफरत के सौदागर,सभी दुश्मन मोहब्बत के।
मगर यह ज़िंदगी तो चंद सांसों की रवानी¹⁰ है।
खुदा मेरे सफी़ने¹¹ को मयस्सर करना तू साहि़ल¹²।
समंदर में है तुग़यानी¹³,मेरी कश्ती¹⁴ पुरानी है।
ग़ज़ल में और नग़मों में लिखा करते है हाले दिल।
“सगी़र” उसका जो अफ़साना¹⁵ वही मेरी कहानी है।
डाक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी
[शब्दार्थ
1 प्यास 2 प्रेम प्रकटीकरण 3 प्राण कष्ट में पड़ना, बेचैनी 4 जिज्ञासा, जानने की इच्छा 5 मांग, किसी को दिया गया ऋण की वापसी 6 ज्ञान, समझ 7 नाराज, असंतुष्ट 8 कथा, कहानी 9 कण 10 बहाव,11 नाव,कश्ती 12 नदी का किनारा river bank, 13 तूफान,सैलाब, 14 नाव,नौका 15 कथा, कहानी