ग़ज़ल सगीर
वह एक शख्स जो देकर गया गुलाब मुझे।
उसी का प्यार मयस्सर है बे हिसाब मुझे।
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जो डूबा रहता है मस्ती में हर घड़ी हर पल।
पिला दे साकी मोहब्बत की वो शराब मुझे।
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यह माना दुनिया में होंगे बहुत हसीन मगर।
हमारा प्यार ही लगता है लाजवाब मुझे।
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मेरी निगाहों से वो दिल में बस गए आकर।
तमाम फूलों में करना था इंतखाब मुझे।
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वह मेरा चांद है रोशन है उसे जीस्त मेरी।
वह महताब भी लगता है आफताब मुझे।
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झुकी है शर्म से पलके अटक गए अल्फाज़।
तेरे सवाल का आता नहीं जवाब मुझे।
सगी़र सब का नज़रिया है उसको पाने का
दिल मेरा मुतमईं कहता है कामयाब मुझे।