ग़ज़ल सगीर
ख़्वाब भी ऊंचे रहें, मंज़िल की तैयारी रहे।
कामयाबी के लिए कोशिश बहुत सारी रहे।
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इक न इक दिन दूर हो जायेगी सारी मुश्किलें।
शर्त ये है बिन रुके अपना सफ़र जारी रहे।
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हम हैं दुनिया में मुसाफिर ,चंद दिन की ज़िंदगी।
जिंदगी से दोस्ती हो मौत से यारी रहे।
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सिर्फ शोहरत के लिए लिखना नहीं कोई ग़ज़ल।
जो लिखो अपनी कलम से लफ्ज़ मेअ़यारी रहे।
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नेकियों के साथ गुज़रे जितनी भी है जिंदगी।
मौत से पहले “सगी़र” मरने की तैयारी रहे।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाज़ार