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11 Dec 2019 · 1 min read

ग़ज़ल- रुकती ग़म की…

ग़ज़ल- रुकती ग़म की…
■■■■■■■■■■■
रुकती ग़म की कभी न धारा है
इस नदी का नहीं किनारा है

धन की खातिर ज़मीर को बेचूँ
यह तो बिल्कुल नहीं गँवारा है

जिसके ग़म में निकल गए आँसू
तंज उसने ही आज मारा है

उससे रिश्ता नहीं रखे कोई
हर क़दम पर यहाँ जो हारा है

मेरी बातों का मान क्यों रक्खे
मैं हूँ जुगनू वो एक तारा है

चूमों “आकाश” तुम बुलन्दी को
वरना कोई नहीं तुम्हारा है

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 09/12/2019

2 Likes · 1 Comment · 234 Views
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