ग़ज़ल रचनाएँ
लिखना पढना छोड दिया तू बात करे हथियारो की,,,,,,,,,,,,
किसने तेरे दिल में भर दी ये बाते अंगारो की ।।।।।।।।।।।
कोमल तेरे दिल को आखिर किसने पत्थर कर डाला,,,,,,,,,,
जो तू फिक्र नही करता है प्यार भरे त्यौहारो की।।।।।।।।।
लड़वाऐगें तुझको ये तो मरवाऐगें आपस में,,,,,,,,,,,,,,,,
जाने तू क्यो बाते माने मज़हब के सरदारो की ।।।।।।।।।
गुरबत में मर जाये चाहे बात करेगें धर्मो की,,,,,,,,,,,,
ऐसी नीति रही है लोगो अब तक की सरकारो की ।।।।।।।।
अनपढ है ये जाहिल है ये,गुरबत में ही जाते है,,,,,,,,,
हर इक लफ्जो में लिखता हूँ बाते मै लाचारो की ।।।।।।।।।।
छोटे छोटे इन हाथो में दिखती है बन्दूक यहाँ,,,,,,,,,,,,,
नस्ल हमारी चलती है अब धारो पे,तलवारो की।।।।।।।।।
सबके हाथो में है खन्ज़र और किताबे छूट गयी,,,,,,,,,
ऊचाँई बढती जाती है नफरत की दीवारो की ।।।।।।।।।।।।
आपस में लड़ते रहने से हासिल क्या तुझको होगा,,,,,,,,,
चाँदी रोज़ कटी है बस धर्मो के ठेकेदारो की।।।।।।।।।।।।।।
डर बिकता, भय बिकता है और बिका है खून ‘लकी’,,,,,,,,,,
गिनती रोज़ बढी जाती है दहशत के बाजारो की ।।।।।।।।।।।।।