ग़ज़ल- यार बस दारू पिलाने में लगे हैं
हर तरफ़ मेले ज़माने में लगे है
इल्म वाले सब गवाने में लगे है
दौर ये पहली नज़र के प्यार का है
सब यहाँ चेहरा सजाने में लगे हैं
तंज़ की वो गुफ्तगू नाज़ुक मिरा दिल
तीर उसके सब निशाने में लगे हैं
हूँ पड़ा मैं दर पे तेरे अब हमेशा
वक़्त काफी आने जाने में लगे है
बांटता हैं ग़म यहाँ पे कौन किसका
यार बस दारू पिलाने में लगे हैं
इस ज़माने भर से कर ली फिर मोहब्बत
मुश्किलें तुझको पटाने में लगे है
बन सकी जिनसे न कोई बात लोगों
लोग वो बातें बनाने में लगे हैं
मांगकर लाए उधार इक ज़िन्दगी जो
किस कदर पल पल चुकाने में लगे हैं
ज़िन्दगी देगी दगा सब जानते हैं
बेवफ़ा से इक निभाने में लगे हैं
शायरी से इन्कलाब आये तो कैसे
सुन के सब ताली बजाने में लगे हैं
शेर कर्कश कौन महफ़िल में सुनेगा
लोग सारे नाच गाने में लगे हैं
– सुरेन्द्र कर्कश