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18 Dec 2021 · 1 min read

ग़ज़ल: मैं वहीं से इक फ़साना हो गया !

#मैं_वहीं_से_इक_फ़साना_हो_गया !

काफ़ – आना
रदीफ़ – हो गया
वज्न – २१२२_२१२२_२१२

…ये ज़माना अब सयाना हो गया !
झूठ दिल का आशियाना हो गया !!

..रब मिला था इक दफ़ा ये याद है,,
दिल मिले तो इक ज़माना हो गया !

….चोट खाई है मिरे दिल ने जहाँ,,
..मैं वहीं से इक फ़साना हो गया !

इस जहां ने दर्द कुछ ऐसा दिया,,
….दर्द से रिश्ता पुराना हो गया !

मैं ज़ुबां पर यूँ चढ़ा कुछ इस तरह,,
…मैं ढला तो इक तराना हो गया !

….भावनाएँ मर चुकी हैं साथियो,,
क़त्ल करना बस बहाना हो गया !

…मैं कहाँ ढूँढूँ जहां में नेक दिल,,
..नेकी से खा़ली ज़माना हो गया !

==============
दिनेश एल० “जैहिंद”
09. 03. 2020

2 Likes · 241 Views
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