सोचा नहीं कभी
सोचा नहीं कभी, ऐसा क्यों हो जाता है।
बढ़ाते हैं हाथ लेकिन, क्यों रुक जाता है।।
सोचा नहीं कभी————————।।
हँसते हुए चेहरे पर, वफ़ा नहीं मिले अगर।
उम्मीदें जिनसे हो, मदद नहीं मिले अगर।।
शीशे की तरहां दिल,टूट क्यों जाता है।
सोचा नहीं कभी———————-।।
फूल गुलाब का हो, आप लेकिन नहीं मचले।
हसीन इन हुर्रों से आप,सदा बचकर ही चले।।
फूलों में भी नश्तर, क्यों मिल जाता है।
सोचा नहीं कभी————————।।
बहाकर खून पसीना, तुमने महल बनाया है।
तुम्हारे ही लहू ने इसको, तलघर बनाया है।।
बर्बाद अपनों से ही घर, क्यों हो जाता है।
सोचा नहीं कभी————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)