ग़ज़ल :– मेरे गद्दे में जरा सी घास भर दो ।
ग़ज़ल :– मेरे गद्दे में जरा सी घास भर दो ।
✍? अनुज तिवारी “इंदवार”
हसरतों में मैकदे की प्यास भर दो ।
ज़िंदगी में इक नया उल्लास भर दो ।
आग लग जाए मेरे सारे बदन में ,
इन रगों में फिर वही अहसास भर दो ।
मलमली बिस्तर मुझे चुभता बहुत है ,
मेरे गद्दे में जरा सी घास भर दो ।
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यादें अब बेचैन सी होने लगी हैं ,
ताज़गी आ जाए इनमें श्वास भर दो ।
ये नई नस्लें खुद ही तो लड़ मरेंगी ,
बस जरा सी कान में बकवास भर दो ।
रिश्तों की ये अहमियत कम हो न पाए ,
नातों में ऐसा अडिग विश्वास भर दो ।
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