ग़ज़ल
——-ग़ज़ल—–
आजा के तेरे हुस्न का सदक़ा उतार दूँ
तू भूल जाए सारा जहां इतना प्यार दूँ
मुद्दत से ख़्वाब देखा है मैंने तो बस यही
तेरे गेसुओं के साये में जीवन ग़ुज़ार दूँ
नहला के तुझको इश्क़ की दरिया में ऐ सनम
उल्फ़त से तेरी और भी रंगत निख़ार दूँ
मुरझाएँगे कभी भी न रुख़सार के ये फूल
गुलशन को तेरे ऐसी बसंती बहार दूँ
वादी में ले चलूँ जहाँ ख़्वाबों का महल हो
फिर तुमपे अपनी सारी मैं खुशियों को वार दूँ
बा शौक़ ज़िन्दगी से ग़मों को मिटाऊँगा
“प्रीतम” न बेक़रार हो तुझको क़रार दूँ
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)