ग़ज़ल: मज़ा आ गया ।
ग़ज़ल: मज़ा आ गया
// दिनेश एल० “जैहिंद”
ग़म जहाँ से छिपाया मज़ा आ गया,
गीत खुशी_का गाया मज़ा आ गया ।
खुद रोया_और लोगों को हँसाया,
दर्द कौन जान पाया मज़ा आ गया ।
निशां ना बाक़ी था किसी धोक़े का,
मिरा चेहरा मुस्काया मज़ा आ गया ।
“जैहिंद” का किस्सा सबसे जुदा है,
सुर्खियों में ना आया मज़ा आ गया ।
==============
दिनेश एल० “जैहिंद”
13. 06. 2017