ग़ज़ल – बुरा लगता है
ग़ज़ल
जब भी तुम रूठ के जाते हो बुरा लगता है
आ के फिर रौब जमाते हो , बुरा लगता है ।
बात करते हो रकीबों से ग़िला कुछ भी नहीं
बाद में हम को बताते हो , बुरा लगता है ।
तुमको है हक़ कि रखो दुनिया से पर्दादारी
राज़ पर हमसे छिपाते हो , बुरा लगता है ।
याद में डूबा तो रहता हूँ तुम्हारी दिन भर
तुम जो रातों में सताते हो , बुरा लगता है ।
ग़ुल खिला देता है दिल में वो तुम्हारा मिलना
जाते जाते जो रुलाते हो , बुरा लगता है ।
– अखिलेश वर्मा