ग़ज़ल : बच… के चली आया करो !
बच… के चली आया करो !
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आने का मन न हो फिर भी मेरी गली आया करो ।
दीदार तुम्हारा हो कि बच….के चली आया करो ।।
आई न कल, आई न परसो,…तुमने भुलाया मुझे,,
तेरे न आने से…….मची है खलबली आया करो ।।
दिल यूँ लगाके यूँ मुझे ना तुम तो तरसाया करो,,
मन में है कोई खोट यूँ तुम जो बदली आया करो ।।
ज़िंदा कहीं ना मर जाऊँ नज़रों से तुम सींचा करो,,
साया मिले…..तेरे बदन का मखमली आया करो ।।
दिल की जलन आके बुझा दो तुम सनम मेरे कभी,,
मेरी रूह….यूँ दिन रात अब है जली आया करो ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
20. 07. 2017