ग़ज़ल :– बंदिश ये रंजिश औ नाकाम से डर जाते हैं ॥
गज़ल :– बंदिश ये रंजिश औ नाकाम से डर जाते हैं ॥
बहर :–
2212–2212–212–2212
बंदिश ये रंजिश और नाकाम से डर जाते हैं ।
रिश्ते न हो जाए ये नीलाम से डर जाते हैं ।
मयखानों में बैठे तो हम जाम से डर जाते हैं ।
पी कर के हम तो उसके अंजाम से डर जाते हैं ।
लगता है डर जालिम ज़माने की बेहयाओ से ।
जब बेअदायी हो तो ईमाम से डर जाते हैं ।
मुस्कान की चाहत में गुमनाम है ये ज़िंदगी ।
क्यों आज हम अपने ही हर काम से डर जाते हैं।
घायल हुए हालात , अक्सर दगा के वार से ।
ईमान पे हम जीते अस्काम से डर जाते हैं ।
नाबूद इन्तीकाम से हो गया हर शक्स जो ।
डरते फिदा से थे जो , इंतिकाम से डर जाते हैं ।