ग़ज़ल/नज़्म — सिरफिरा आशिक
(ग़ज़ल/नज़्म — सिरफिरा आशिक)
ये प्यार-व्यार का तो, बस एक बहाना है,
मुझे सच में तो तुझे, मेरे पास बुलाना है ।
क्या पता मुझसे मिलने, तू आए ना आए,
जो मेरी बदनामियों का, खुला खज़ाना है ।
कितना बिगड़ैल हूँ, या कितना अच्छा मैं,
मुझसे मिलकर तुझे, ये जान जाना है ।
मेरे दिल को तू जम गई, तो बस जम गई,
वरना इसमें किसी का, नहीं ठिकाना है ।
तुझे जंचे तो तू चाहे, प्यार करना ना करना,
पाबन्द नहीं किया तेरा, अपना ज़माना है ।
सिरफिरा आशिक बनके, मैंने कूच किया,
कोशिशों में नहीं लगता, कोई हरजाना है ।
हम ही नहीं बहुत गुजरे, इस राह से “खोखर”,
तेरी हाँ से सिरफिरे को, अलग रस्ता बनाना है ।
(पाबन्द = बन्धन में बंधा हुआ, नियम, प्रतिज्ञा, विधि, आदेश आदि का पालन करने के लिए बाध्य)
(जम गई = भा गई, अच्छी लग गई, पसंद आ गई)
(कूच = रवानगी, प्रस्थान)
(ज़माना = समय, काल, वक्त, संसार)
(हरजाना = हर्जाना, क्षतिपूर्ति, नुकसान के बदले दी जाने वाली रकम, )
(सिरफिरा = सनकी, धुनी; जिसको किसी प्रकार की धुन हो)
©✍?06/02/2021
अनिल कुमार (खोखर)
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