ग़ज़ल/नज़्म – ये प्यार-व्यार का तो बस एक बहाना है
ये प्यार-व्यार का तो बस एक बहाना है,
सच में तो मुझे बस तुझे पास बुलाना है।
क्या पता मुझसे मिलने तू आए ना आए,
मेरी बदनामियों का जो खुला खज़ाना है।
कितना बिगड़ैल हूँ या कितना अच्छा हूँ मैं,
मुझसे मिलने कर ही तुझे पता लगाना है।
मेरे दिल को तू जम गई तो बस जम गई,
वरना इसमें किसी का नहीं ठोर-ठिकाना है।
तुझे जंचे तू प्यार कर या ना कर, तेरी मर्जी,
तू पाबन्द नहीं है यहाँ तेरा अपना ज़माना है।
सिरफिरा आशिक़ बनकर ही कूच किया है,
कोशिशों में तो लगता नहीं कोई हर्जाना है।
सिर्फ़ हम ही नहीं बहुत गुजरे हैं इन राहों से,
तेरी हाँ से ही सिरफिरे को रस्ता बनाना है।
(पाबन्द = बन्धन में बंधा हुआ, नियम, प्रतिज्ञा, विधि, आदेश आदि का पालन करने के लिए बाध्य)
(जम गई = भा गई, अच्छी लग गई, पसंद आ गई)
(कूच = रवानगी, प्रस्थान)
(ज़माना = समय, काल, वक्त, संसार)
(हरजाना = हर्जाना, क्षतिपूर्ति, नुकसान के बदले दी जाने वाली रकम, )
(सिरफिरा = सनकी, धुनी; जिसको किसी प्रकार की धुन हो)
©✍🏻 स्वरचित
अनिल कुमार ‘अनिल’
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