ग़ज़ल:- नज़र नज़र से छुपा कर नज़र मिला लेना…
कभी तू ख़्वाब में आकर नज़र मिला लेना।
नज़र नज़र से छुपा कर नज़र मिला लेना।।
नज़र सभी से चुरा कर नज़र मिला लेना।
ऐ चश्म-ए-नाज़ उठा कर नज़र मिला लेना।।
रहें हज़ार ही पहरे, नक़ाब चेहरे पर।
कभी हिजाब हटा कर नज़र मिला लेना।।
ख़लल चराग़ अगर डाले गर मुहब्बत में
उसे तू ताक में रख कर नज़र मिला लेना।।
कभी किसी को तुझे गर हलाल करना हो।
तो एक ऑंख दबा कर नज़र मिला लेना।।
ब-चश्म-ए-तर ऐ झुकी सी निगाहें जब तेरी।
तू अश्क़ अपने छुपा कर नज़र मिला लेना।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
ब-चश्म-ए-तर :- आंसुओं से भरी आंख