ग़ज़ल—- ज़ख्म किसी को दिखाना नहीं।
राज़ दिल के किसी को बताना नहीं
है भरोसे के लायक जमाना नहीं।
रहम उन पर करो जो हैं बेबस पड़े
तुम कभी भी दुखी को सताना नहीं ।
मान उनका करो जन्म जिसने दिया
राह में शूल उनके बिछाना नहीं।
रंज गम के सिवा कुछ न हासिल यहां
“ज़ख्म अपने किसी को दिखाना नहीं।”
है कठिन सी डगर औ तेरा इम्तिहां
सत्य के पथ से तुम पग हटाना नहीं।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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