ग़ज़ल- जज़्बात बेच बेच के (राना लिधौरी)
**ग़ज़ल-जज़बात बेच-बेच के*
जज़्बात बेच-बेच के खाने लगे हैं लोग।
शादी के ज़रिए पैसा कमाने लगे है लोग।।
आदर्श विवाह सिर्फ दिखावा है दोस्तों।
चैक भी एडवांस में मंगाने लगे है लोग।।
कैसा ये इंक़लाब है कैसा निज़ाम है?
कमज़ोर बेबसों को सताने लगे है लोग।।
करते है जो दहेज प्रथा का विरोध उन्हें।
पिछड़ा हुआ मनुष्य बताने लगे है लोग।।
कमज़ोर की पुकार पे ‘राना’ जी देखिए।
ज़ालिम के साथ हँसने-हँसाने लगे है लोग।।
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़
संपादक-“आकांक्षा” हिंदी पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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