ग़ज़ल ( चंद अश’आर )
ग़ज़ल ( चंद अश’आर )
तेवर उनके…. अब नरम होने लगे हैं ।
आँखों को यह….. भरम होने लगे हैं ।।
कभी जो होते थे शोख़ और पाकीज़ा ।
रंग वो……. अब बेशरम होने लगे हैं ।।
नज़रें फ़ेर लेने में…. उन्हें महारत थी ।
अब मुझ पर उनके करम होने लगे हैं ।।
उनको चाहा , उनका ऐहतराम किया ।
मेरे लिए वो ईमान-धरम होने लगे हैं ।।
यूं तो ख़ामुश तबीयत हैं काज़ी लेकिन ।
मिरी ख़ामुशी पर वो गरम होने लगे हैं ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इंदौर