“ग़ज़ल” : ( खूब बदलते देखा है )
“ग़ज़ल” : ( खूब बदलते देखा है )
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हमने मौसम का मिज़ाज “खूब बदलते देखा है”।
ओहदा किसी का बढ़ जाए, तेवर चढ़ते देखा है।।
हर दिन जो औरों की गुलामी किया करते थे।
उसके चेहरे पे भी मुस्कान बिखरते देखा है ।।
ज़िंदगी बीत गई दो वक्त की रोटी की जुगत में ।
उसे भी चिड़ियों की तरह उड़ते, चहकते देखा है।।
होती थी जिनकी पाॅंचों उंगलियाॅं सदैव घी में ।
उनके बीबी बच्चों को भी रोते-बिलखते देखा है।।
औरों को जीवन की सीख जो देते थे रात-दिन।
उनके हौसले को भी कई दफा टूटते देखा है ।।
असफलता से पीछा छूटता नहीं था जिसका ।
उसे भी सफलता की सीढ़ियाॅं चढ़ते देखा है ।।
कदम कभी पड़ते नहीं थे जिसके इस जमीं पर।
उसे भी कच्ची सड़कों से हमने गुजरते देखा है।।
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 30 नवंबर, 2021.
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