ग़ज़ल-क्यूं बागों को खंगाला जा रहा है
गुनाह हमी पे डाला जा रहा है
क्यूँ बागों को खंगाला जा रहा है।
कली है नाज से पाली उसी के
ख़ियाबाँ को न पाला जा रहा है।
ख़ता की है किसी ने औ किसी के
गुनाहों को संभाला जा रहा है।
सवालों को जगाया है अभी से
अदीबों को निकाला जा रहा है
तमाशा ही बनाया है खुशी से
चरागों को उछाला जा रहा है।
रंजना माथुर
दिनांक 20/04/2018
जयपुर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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