ग़ज़ल-कुछ नहीं आता !
दिन-रात की आफत के सिवा कुछ नहीं आता
चाहत में मुसीबत के सिवा कुछ नहीं आता
लो चाय में भी चाय की पत्ती नहीं डाली
तुमको तो मुहब्बत के सिवा कुछ नहीं आता
दुनिया की हर एक माँ में कमी ये है कि उसको
बच्चों की हिफाज़त के सिवा कुछ नहीं आता
सपनों में भी सपनों का जहां ढूँढने वालो
सपनों में हक़ीक़त के सिवा कुछ नहीं आता
दुशमन मेरे यारों से सबक़ सीख रहे हैं
यारों को अदावत के सिवा कुछ नहीं आता
नेकी भी कमाई है भलाई भी मिली है
पर काम तो दौलत के सिवा कुछ नहीं आता
इस दौर में अपना या पराया नहीं कोई
अब याद ज़रुरत के सिवा कुछ नहीं आता
ख़ुद अपने कहे पर वो अमल क्यूँ नहीं करते
क्या उनको नसीहत के सिवा कुछ नहीं आता