ग़ज़ल :- कल्प’ अभी भी बाक़ी है…
हारो नहीं विकल्प अभी भी बाक़ी है।
जीतोगे संकल्प अभी भी बाक़ी है।।।
जिंदा रहूंगा इस दुनिया से जाकर मैं।
मेरा ये संकल्प अभी भी बाक़ी है।।
ख़त्म हुए सब खेल क़यामत के आगे।
मेरा एक प्रकल्प अभी भी बाक़ी है।।
सच से कौन नहीं बाक़िब इस दुनिया में।
नेता जी का गल्प अभी भी बाक़ी है।।
झूठों का पलड़ा भारी पर हारेंगे।
सच बहुत नही पर अल्प अभी भी बाक़ी है।।
बैच दिया धर द्वार बढ़ी महगाई में।
बिस्तर बोरी तल्प अभी भी बाक़ी है।।
पिटे पिटाये बैठे हैं सब मंचों पर।
हाॅं इक़ शायर ‘कल्प’ अभी भी बाक़ी है।।
✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’
निर्विकल्प- शास्वत,निश्छल,स्थिर,जिसका कोई विकल्प न हो
प्रकल्प- विशिष्ट घटनाओं का कालखंड, युग, काल
गल्प- मिथ्या प्रलाप, ढींग, गप्प,
तल्प- सैया, सैज, पलंग, अट्टालिका, अटारी