ग़ज़ल :– अपनी जुबां से कह नहीं सकते !!
ग़ज़ल :–अपनी जुबां से कह नहीं सकते ।
गज़लकार :– अनुज तिवारी “इन्दवार”
दिलों के रंज-गम अपनी जुबां से कह नहीं सकते ।
दगा दे यार साहिल पर समन्दर सह नहीं सकते ।।
मचा ले खलबली चाहे यहाँ आगोश में लहरें ।
तूफां भी चाहे तो समन्दर बह नहीं सकते ।।
तजुर्बा था बहुत हमको हुनर भी काम ना आया ।
जिगर में जख्म ऐसे थे की मरहम भर नहीं सकते ।।
गुलों के गुलाबी रंग के कायल ये भंवरे भी ।
कांटे गर चुभे दामन ये जिंदा रह नहीं सकते ।।
“अनुज” देता है नसीहत यहां इन गम के मारों को ।
वो अक्सर टूट जाते हैं जो पत्थर ढह नहीं सकते ।।