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2 May 2017 · 1 min read

ग़ज़ल।

कोशिश बहुत की बदलाव के लिए।
राहत नहीं है दिल के घाव के लिए।

वो मुझको बेवफा अब मान बैठी है
जगह नहीं दिल मे सद्भाव के लिए।

ये काम उसे फूटी आंख नही भा रहा।
मै क्या सोचूं अगले पडाव के लिए।

ये मामला निपटाने की सोच रहा हूं।
वो पत्थर उठा ली पथराव के लिए।

कैसे समझाएं हाल ए दिल को उसे।
क्ई रस्ते खुले हैं अलगाव के लिए।
अनिल अयान सतना

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