ग़ज़ल क्या कहें?
कुछ ऐसा मेरे दिल पे है,
आपके रूप का असर,
जी चाहता है कि रच दूं मैं,
आप पे कोई ग़ज़ल,
उठती-झुकती पलकों पे मैं,
कह जाऊं कोई ग़ज़ल,
सादगी से सजे सौंदर्य पे मैं,
बस लिखता जाऊं ग़ज़ल,
ग़ज़ल हो वो ऐसी जिसमे,
ज़िक्र हो बिखरी जुल्फों का,
बयां करे जो आंखों की नज़ाकत,
कुछ ऐसी हो वो ग़ज़ल,
हसीन आपके होठों पे जैसे,
सजी है ख़ूबसूरत मुस्कान,
कुछ ऐसे ही आपकी तारीफों से,
सजी हो मेरी ग़ज़ल,
फिर सोचता हूं कि आप पे मैं,
कैसे लिखूं कोई ग़ज़ल,
ग़ज़ल पे ग़ज़ल बनेगी कैसे,
कि आप ख़ुद ही हैं एक ग़ज़ल।
कवि-अंबर श्रीवास्तव