ग़ज़ल।मुझको सिफ़ारिश न मिली ।
आज तक मेरे प्यार को बेसक गुज़ारिश न मिली ।
हूँ आंसुओ में तरबतर पर एक बारिस न मिली ।।
आये इलाजे इश्क़ की बनकर दवा इस जिंदगी में ।
चार दिन रौनक रही फ़िर कोई नुमाइश न मिली ।
एकटक नज़रों के बदले दे गये तनहाइयां फ़िर ।
दर्द का हिस्सा मिला यांदें निख़ालिश न मिली ।।
बेवज़ह आँखों का मेरे जुल्म साबित हो चुका था ।
फ़ैसला उनको मिला मुझको सिफ़ारिश न मिली ।
एक दिल था ,एक उनके थी अदाओं की काशिस ।
एक तरफ़ा प्यार में कुछ आजमाइस न मिली ।
रौंदकर मेरी चाहतों को खो गये हमआम बनकर ।
मंजिलें लाखों मिली पर एक ख़्वाहिश न मिली ।।
आज भी गर्दिश है’रकमिश’ तू नही तो कुछ नही ।
प्यार में खाया ज़फ़ा फ़िर भी रहाइस न मिली ।।
©राम केश मिश्र’रकमिश’