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21 Apr 2022 · 1 min read

ग़ज़लों‌ का जिंदगी से सुनो राब्ता भी है।

ग़ज़ल- फिल से हासिल

221……2121……1221……212
ग़ज़लों‌ का जिंदगी से सुनो राब्ता भी है।
होता है बेबहर सा बशर कांपता भी है।

तक्तीअ जिंदगी की करो इक ग़ज़ल समझ,
सुलझी हो जिंदगी तो सही रास्ता भी है।

बढ़ते हैं रोज दाम मरा आम आदमी,
सरकार में भी कौन इसे सोचता भी है।

जीवन कटेगा कैसे बिना रोजगार के,
वो जिंदगी के बोझ तले जी रहा भी है।

अच्छे दिनों की आश ही जिंदा रखे हुए,
अमृत की चाह में वो ज़हर पी गया भी है।

मैंने निभाया प्यार रहे दूर भी करीब,
नजदीकियां रहीं हैं मगर फासला भी है।

फूलों का गर चे साथ हो मिलती हैं खुशबुएं,
प्रेमी से दिल मिले तो यही फायदा भी है।

………✍️ प्रेमी

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