गहमागहमी
घर के एक
जिम्मेदार शख्स ने
कई दिनों बाद
लौटकर
अपने घर की
दहलीज़ पर
पांव रखा था।
गला खंखारती
ये खबर जैसे ही
घर में दाखिल हुईं।
आंगन में बैठी
हंसी, ठिठोलियाँ
रुककर, अपना दुपट्टा और पल्लू
संभालने लगीं।
कुछ खिलखिलाहटें
घर के दरवाजे की ओर
दौड़ गयीं,
अपने वादों का हिसाब लेने।
बुढ़ी फिक्रमंद आंखे लाठी
टेकती हुई, बरामदे में आयी
और सर पर हाथ फेर कर
हालचाल पूछने लगी ही थीं,
कि एक चुलबुली सी
फ्रॉक अपनी चोटियों
के साथ पानी का गिलास
लेकर हाज़िर हुई।
नई किताबों और पेंसिल बॉक्स
को देखकर पानी भी थोड़ा
छलक ही पड़ा।
एक जिद, फिर
गोद में बैठकर
अपनी नई
फ़रमाइशें मनवा कर
ही उठी।
हल्की मूछें अब अदब से
चल रही थी।
इसी बीच दो शरारती
नन्हे कदम,
चौके मे बैठी
चाय बनाती हुई
लजाती,मुस्कुराती आँखों से,
मिन्नतें करने भी पहुंचे थे,
कि उनकी पिछली शरारतों की
फेहरिस्त का श्वेत पत्र
इस बार के लिए स्थगित रहे, तो
वो भविष्य में इसमें भारी कटौती के
समझौते पर भी राजी हैं।
चारे को मुँह मे दबाए
खूंटे से बंधी एक पीठ
को अपनी पारी
का इंतजार था।
साथ आये बक्से में ,
कपडों
के बीच दबी एक साड़ी
की आंख तो खुली,
पर वो करवट बदल कर
सो गई,
दिन ढलने मे अभी
वक़्त था।
सारा घर कसा कसा सा
घुम रहा था।
बहुत गहमागहमी सी
रहने वाली थी अभी कुछ
दिन।