गवाही देंगे
मुझे जब कभी ढूंढिएगा
किसी पर्वत पर या नदी के मुहाने पर ढूंढिएगा
हवाओं की गर्मजोशी में ढूंढिएगा
झरनों की झनकार में ढूंढिएगा
खिलते हुए फूल की खुशबू में ढूंढिएगा
भबरो की मधुर गुंजन में ढूंढिएगा
वहीं कहीं मिल जाऊंगा
मेरे गीत गाएगा पर्वत
नदियां साज़ देगी
हवाएं सरगमों को परवाज देगी
झरनों की ध्वनियां जब तुम को सुनाई देगी
समझ लेना की हम वहीं है
खिलते हुए फूल जब दिखाई देंगे
मेरे सृजन की तुमको कहानी याद दिलाएंगे
जब सुनोगे कभी मेरी कविताएं कहीं पर
तो प्यार की खुशबू में खुद को पा जाओगे
भबरे गुंजन कर देंगे मेरे लिखे अल्फाजों का
मौसम की बारिश तुम्हारे और मेरे प्रेम की गवाही देंगे
सुशील मिश्रा ‘क्षितिज राज ‘