गलतियों का जुर्माना
आइना सच बोल जाए गर तो वो भी बिखरता है।
खुद को असली किरदार में कुबूल कौन करता है।
किसी ने अपनी किरदारे-असलियत देखी कब है।
गलतियों का जुर्माना खुदसे वसूल कौन करता है।
बेगुनाह पे उंगली उठाने दोषी पाक-साफ आते हैं।
जलता घर बचाने में वक्त फिजूल कौन करता है।
-शशि “मंजुलाहृदय”