#कुंडलिया//
सोचे है हर फूल यह , मुझसे महके बाग।
बड़े ग़लत हैं भाव जी , अहं लगी यह आग।।
अहं लगी यह आग , गये आये हैं कितने।
चमन रहा आबाद , झरे खिले फूल कितने।
सुन प्रीतम की बात , दंभ के छोड़ो लोचे।
सबका अपना मान , बड़ा छोटा मत सोचे।
इतरा मत तू भूल से , सुख है किसका मीत।
धूप-छाँव-सा खेल है , सुख-दुख की ये रीत।।
सुख-दुख की ये रीत , छोड़ दे तेरा-मेरा।
अवसर है ये नेक , जागिए तभी सवेरा।
सुन प्रीतम की बात , प्रेम जग में दे बिखरा।
महके जैसे इत्र , प्यार देकर यूँ इतरा।
#आर.एस. ‘प्रीतम’